विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ऐसा क्या बोला, “चीन उनकी बात पर सहमत हो गया”

इन दिनों भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का एक बयान पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। उन्होंने ऐसा कुछ कहा, जिससे चीन उनकी बात को लेकर भी सहमत है।

s jaishankar
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एस जयशंकर ने कहा, “मैं दूर के लोगों की तुलना में समस्या के करीब के लोगों पर भरोसा करता हूं, क्योंकि दूर के लोगों में दूर जाने की प्रवृत्ति होती है, ऐसा कुछ हमने अफ़ग़ानिस्तान में देखा। जब आप एक पड़ोसी होते हैं, तो समझ और रुचियां इससे बहुत अलग होती हैं। उन्होंने यह संदेश अमेरिका के बारे में दिया है, जब अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान से रातों रात निकल गया। उसने दूसरे देशों की कोई चिंता नहीं की।

19वीं शताब्दीUK
20वीं शताब्दीअमेरिका
21वीं शताब्दीसंभावित एशियन

चीन के विषय में एस जयशंकर ने बोला, ” जब से बीजिंग ने सीमा पर विवाद खड़ा किया है तब से भारत और चीन के रिश्ते बहुत ही कठिन दौर से गुज़र रहे हैं। एस जयशंकर ने आगे अपनी बात दोहराते हुए कहा कि एशियन सेंचुरी तब तक घटित नहीं हो सकतीं है, जब तक चीन और भारत हाथ नही मिला लेते हैं और मिलकर आगे काम न करें। 21वीं सदी तभी एशियन सेंचुरी कही जा सकती है जब भारत और चीन विकसित नहीं हो जाते हैं।

चीन का जवाब

जयशंकर की टिप्पणियों पर, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि “जैसा कि हम भी कहते हैं,” जब तक चीन और भारत विकसित नहीं होंगे, तब तक कोई एशियाई शताब्दी नहीं होगी। कोई भी वास्तविक एशिया-प्रशांत शताब्दी या एशियाई शताब्दी तब तक नहीं आ सकती जब तक चीन, भारत और अन्य पड़ोसी देश विकसित नहीं हो जाते।”

प्रवक्ता ने कहा, “चीन और भारत दो प्राचीन सभ्यताएं हैं, दो प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाएं और दो पड़ोसी देश हैं, हमारे मतभेदों से कहीं अधिक सामान्य हित हैं। दोनों पक्षों के पास एक-दूसरे को कम करने के बजाय एक-दूसरे को सफल बनाने में मदद करने की बुद्धि और क्षमता है।” यह पूछे जाने पर कि क्या चीन पूर्वी लद्दाख में बचे विवादित बिंदुओं पर भारत के साथ बातचीत करेगा, वांग ने कहा, “चीन और भारत सीमा प्रश्न पर सहज संचार बनाए रखते हैं। और हमारी बातचीत प्रभावी है।”

चीन की चालाकी

हालाकि यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि चीन ने एशिया प्रशान्त शताब्दी कहा है, जबकि भारत हमेशा इंडो पैसिफिक कहता है। जिससे साफ होता है, ” शी जिनपिंग के नेतृत्व वाला चाइना बेहद आक्रामक और घमंडी है। चीनी नेताओं का मानना है कि चीन के विकसित हो जाने से भी एशियन सेंचुरी आ सकती है। जबकि ऐसा कुछ नहीं हो सकता है। क्योंकि सन 700 में भारत चीन मिलकर पूरी दुनिया का 55 % कारोबार नियंत्रित करते थे। जबकि अब ऐसा नहीं है। यह तभी संभव है, जब भारत और चीन मिलकर आगे बढ़ें।