चंद्रगुप्त मौर्य मगध साम्राज्य का एक महान सम्राट हुए। जिन्होंने आम जनता के बीच दिल का रिश्ता बनाया हुआ था। जबकि इससे पूर्व नंद वंश का सम्राट धनानंद एक क्रूर और निर्दय था। जिसे जनता के दुखों से कोई मतलब नहीं था।
चंद्रगुप्त मौर्य से संबंधित टॉप 20 फैक्ट्स
1.चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म सन् 345 ईसा पूर्व में हुआ था। तब मगध साम्राज्य पर धनानंद का शासन हुआ करता था।
2. मौर्य राजवंश की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा 322 ईसा पूर्व में की गई थी। धनानंद एक क्रूर और निर्दयी राजा था।
चन्द्रगुप्त ने विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया , जिसमें सम्पूर्ण बिहार , उड़ीसा ( ओडिशा ) एवं बंगाल के बड़े भागों के अतिरिक्त , पश्चिमी व उत्तर – पश्चिमी भारत और दक्कन भी शामिल थे। चंद्रगुप्त मौर्य ने एक अखिल भारतीय सम्राज्य की स्थापना की थी। मौर्य साम्राज्य का विस्तार उत्तर पश्चिम में हिंदूकुश से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक तक और पूर्व में मगध से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तक था।
3. एक विदेशी जस्टिन ने मगध सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को सेन्ड्रोकोट्टस कहा है। जिसकी पहचान विलियम जोन्स ने मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य से की है ।
4. विशाखदत्त कृत ने अपनी कृति मुद्राराक्षस में चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए एक शब्द वृषल का उपयोग किया है। जिसका आशय “निम्न कुल” में उत्पन्न हुआ।
ब्राह्मण परंपरा के अनुसार उसकी माता शूद्र जाति की “मुरा” नामक स्त्री थी, जो नंदों के रनिवास में रहती थी । बौद्ध परंपरा से ज्ञात होता है कि नेपाल की तराई से लगे गोरखपुर में मौर्य नामक क्षत्रिय कुल के लोग रहते थे । संभव है कि चन्द्रगुप्त इसी वंश का था।
5. घनानंद को हराने में चंद्रगुप्त मौर्य की सबसे बड़ी सहायता उसके गुरू ने की है। उसका गुरू चाणक्य थे। जिनको कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। यही बाद में चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री बने। इन्होंने तात्कालिक शासन व्यवस्था पर एक पुस्तक लिखीं है। जिसका नाम अर्थशास्त्र है, जिसका संबंध राजनीति से है।
6. चन्द्रगुप्त मौर्य धनानंद को हराने के बाद, मगध की राजगद्दी पर 322 ईसा पूर्व में बैठा।
7. चन्द्रगुप्त जैनधर्म का अनुयायी था।
8. चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना आखिरी समय कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर बिताया।
9. चन्द्रगुप्त मौर्य ने यूनान राजा सेल्यूकस निकेटर को 305 ईसा पूर्व में हराया था।
10. हार के बाद सेल्यूकस निकेटर ने अपनी बेटी हेलेना की शादी चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ करा दी और युद्ध की संधि कर ली।
11. संधि की शर्तें – सेल्यूकस निकेटर ने चार प्रांत काबुल , कन्धार , हेरात एवं मकरान चन्द्रगुप्त को दिए। चन्द्रगुप्त ने पश्चिमोत्तर भारत को सेल्यूकस की गुलामी से मुक्त किया और बाद में दोनों शासकों के मध्य समझौता हो गया और चन्द्रगुप्त से 500 हाथी लेकर उसे पूर्वी अफगानिस्तान , बलूचिस्तान और सिंधु के पश्चिम का क्षेत्र दे दिया ।
12. चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन गुरु भद्रबाहु से जैनधर्म की दीक्षा ली थी।
13. चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में ‘मेगस्थनीज’ सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था। इंडिका उसके द्वारा लिखी गई एक पुस्तक है। मेगस्थनीज के अनुसार, सम्राट का जनता के बीच कुछ अवसरों पर आते थे। इस अवसर पर शोभा यात्रा के रूप में जश्न मनाया जाता था। सम्राट को एक सोने के पालकी में ले जाया जाता था। उनके अंगरक्षक सोने और चाँदी से अलंकृत हाथियों पर सवार रहते हैं । कुछ अंगरक्षक पेड़ों को साथ लेकर चलते थे। इन सभी पेड़ों पर प्रशिक्षित तोतों का झुण्ड रहता है जो सम्राट के सिर के चारों तरफ चक्कर लगाता रहता है।
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14. सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के चारो तरफ हथियारबंद महिलाएं होती थी। उनके खाने को नौकर खुद पहले खाया करते थे। उसके बाद सम्राट खाना खाते थे।
15. वे एक कमरे में एक रात ही सोते थे। ताकि कोई दुश्मन उनकी थाह न ले पाए।
16. मगध की राजधानी पाटलिपुत्र हुआ करती थी। जो विशाल प्राचीर से घिरी रहती थी। इसमें 570 बुर्ज और 64 द्वार होते हैं। दो और तीन मंजिल वाले घर लकड़ी और कच्ची ईंट्टों से हुए होते थे। राजा का राजमहल भी काठ का बना होता था जिसे पत्थर की नक्काशी से अंलकृत किया जाता था। जो उद्यानों और चिड़ियों के लिए बने बसेरों से घिरा रहता था।
17. चन्द्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस के बीच हुए युद्ध का वर्णन इतिहासकार एप्पियानस ने किया है। जिसमें सेल्यूकस की हार हुई।
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18. प्लूटार्क के अनुसार, चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस निकेटर को 500 हाथी उपहार स्वरूप प्रदान किए थे।
19. चंद्रगुप्त की मौत 298 ईसा पूर्व में श्रवणबेलगोला में उपवास के दौरान हुई।
20. चंद्रगुप्त मौर्य का पुत्र बिन्दुसार था। यही आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी हुआ, जो 298 ईसा पूर्व में मगध की राजगद्दी पर बैठा। दुर्धरा धनानंद की बेटी और बिन्दुसार की माता थीं।
21.कोटिल्य में नौकरशाही के बारे में बताया गया है कि सबसे बड़ा अधिकारी आमात्य या महामात्र होता था। जिनकी संख्या कुल 18 थी।
22.नौकरशाही का क्रम मिस्र के पिरामिंडो के समान थीं। सबसे पहले मंत्री और बाद में कर्मचारी आते थे।
23.मौर्य राजधानी पाटलिपुत्र का प्रशासन कुल 6 समातियां संचालित करती थी। हर एक समिति में 5-5 सद्स्य होते थे। यह समितियां वर्तमान नरगरपालिकाओ और नगर निगमों की भांति कार्य किया करती थी।
24.चंद्रगुप्त मौर्य के प्रशासन की सबसे मुख्य विशेषता एक विशाल और स्थाई सेना का रखना है। कोटिल्य के अनुसार, सेना चतुरंगिणी (पैदल, हाथी, घोड़े और रथ) थी। सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए मजबूत दुर्ग बने हुए थे। जिनके रक्षकों को दुर्गपाल और अंतपाल कहते थे।
25.एक यूनानी लेखक प्लिनी के अनुसार, चंद्रगुप्त की सेना में 6,00,000 पैदल सैनिक, 30,0000 घुड़सवार और 9,000 हाथी थे।
26.नगरों में शांति स्थापित करने की व्यवस्था नगराध्यक्ष की थी। दंड पाल पुलिस विभाग का सबसे बड़ा प्रधान होता था।
27.गुपचरों को गूंढ पुरुषोंके नाम से जाना जाता था। पूरे साम्राज्य में गुपचरों का एक जाल सा बिछा हुआ था।