Patola Saree Blouse: जानिए कैसे आप पटोला साड़ी  में हॉट दिखेंगी।

Patola Saree Blouse: जानिए कैसे आप पटोला साड़ी  में हॉट दिखेंगी।

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Patola Saree Word Origin

Patola Saree Blouse : भारत में साड़ी एक परंपरात आउटफिट्स के रूप मे फैमस है और साड़ी के भी कई वैरायटी आतें हैं। जिनमें एक पटोला साड़ी भी शामिल है। पटोला साड़ी और गुजरात का एक विशेष संबंध है। क्योंकि गुजरात की पाटन पटोला साड़ी कुछ खास होती है।  पटोला साड़ी का एक अपना इतिहास है। भारत में साड़ी हर महिला की पारंपरिक पोशाक है, जो हर महिला को सुंदर और उसकी खुबसूरती को निखारती है।। साड़ी से आप अपने आप को मॉडर्न और पारंपरिक (traditional) दोनों ही लुक आसानी से दे सकते हो। भारत में अलग अलग प्रकार की साड़ियाँ बनाई जाती हैं। जिनमें बनारस की बनारसी साड़ी, बंगाल की कांथा काम, दक्षिण भारत की कांजीवरम(kanjeevaram) साड़ी, और असम से मेखला चादर और जूट रेशम(jute silk) साड़ी शामिल हैं। इन्हीं में से एक गुजरात की पटोला साड़ी भी है।

सिल्क पटोला साड़ी (Silk Patola Saree)

पटोला साड़ी दिखने में बेहद खूबसूरत और आकर्षक होती है। खासकर इस की गई कारीगरी विश्व प्रसिद्ध होती है। जो भी इस पटोला साड़ी को पहनता है, वह बेहद खास बन जाता है। This types Patola Saree will make ladies hot and spicy.

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Patola Saree Blouse

पटोला साड़ी को बनाने में बड़ी मेहनत लगती है। क्योंकि साड़ी की कला अद्भुत है। पटोला साड़ी बनाने वाला मैटेरियल और कारीगर वर्ल्ड क्लास (World Class) के होने चाहिए। हम सब पटोला साड़ी के इतिहास के बारे में जानतें हैं।

Patola Saree Word Origin

हम और हम पटोला साड़ी के शब्द के इतिहास के बारे मे जानने को उत्सुक रहते हैं तो हम आपको बताते चलें कि पटोला साड़ी का शब्द पटोला संस्कृत भाषा के ‘पट्टकुल्ला’ से लिया गया है। लेकिन पटोला के जो कपड़े हैं, वे गुजराती ओरिजिन के माने जाते हैं। किन्तु अगर हम इसके सर्वप्रथम उल्लेख के विषय में हैं तो इसका सबसे पहले लिखित उल्लेख दक्षिण भारतीय धार्मिक ग्रंथ नरसिंह पुराण में भारतीय प्राचीन महिलाओं द्वारा त्यौहारों और पवित्र अवसरों पर पहने जानी वाली पोशाक के रूप में हुई है।

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PatolaSareeblouse

गुजरात में पटोला साड़ी का लिखित उल्लेख ‘ पट्टाकुल्ला’ नाम से 11वीं शताब्दी में हुआ था। गुजरात के सोलंकी किंगडम के पतन के बाद, गुजरात में पटोला साड़ी का व्यापार चल पड़ा था। तब से आज तक पटोला साड़ी गुजरात में सभी महिलाओं के लिए एक गर्व का प्रतीक और पारंपरिक पोशाक बन गई है।

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कुछ इतिहासकारों का मानना है कि दक्षिण भारत से पटोला साड़ी को बनाने की तकनीक कर्नाटक और महाराष्ट्र से होते हुए गुजरात पहुंची थीं। तब कई रेशम बुनकर 12वीं शताब्दी में दक्षिण भारत से गुजरात में चले गए थे।।

पटोला साड़ी के ओरिजिन से संबंधित एक ओर कहावत है कि आज से लगभग 900 वर्ष पूर्व राजा कुमारपाल के शासन में पटोला साड़ी की उत्पत्ति हुई थी। तब राजा कुमारपाल ने इस से धन का एक प्रतीक चिन्ह बनाया था।

पटोला साड़ी कैसे बनती है?


एक पटोला साड़ी बनाने के लिए, अंतिम बुने हुए कपड़े के वांछित पैटर्न के अनुसार डाई का विरोध करने के लिए ताने और बाने दोनों धागे लपेटे जाते हैं।  यह बाँधना प्रत्येक रंग के लिए दोहराया जाता है जिसे तैयार कपड़े में शामिल किया जाना है।  बुनाई से पहले ताने और बाने को रंगने की तकनीक को डबल इकत (double ikat) कहा जाता है।  धागे के बंडलों को रंगने से पहले रणनीतिक रूप से बांधा जाता है। सूरत, अहमदाबाद और पाटन की पटोला साड़ियाँ अपनी रंगीन विविधता और ज्यामितीय शैली के लिए प्रसिद्ध हैं।
बुनकर को एक पटोला तैयार करने में करीब करीब चार से सात महीनों का समय लग जाता है।

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पटोला साड़ियाँ कहाँ बनती हैं?

पाटन, गुजरात, भारत

पटोला एक double ikat से बुनी हुई साड़ी है, जो आमतौर पर रेशम से बनाई जाती है, जिसे पाटन, गुजरात, भारत में बनाया जाता है।  पटोला शब्द एक बहुवचन रूप है और इसका एकवचन पटोलू है। पटोला साड़ी बेहद महगीं सदियां हैं, इनको केवल शाही और कुलीन परिवारों से संबंधित लोगों द्वारा ही पहनें जाती हैं।  ये साड़ियाँ उन लोगों के बीच लोकप्रिय हैं जो अधिक कीमत वहन कर सकते हैं।

Patola Saree : पटोला डिजाइन के अलग अलग प्रकार क्या हैं?

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पटोला साड़ियां (Patola Sarees) दो तरह की होती हैं।  जिनमें पहली राजकोट पटोला यह केवल लंबवत प्रतिरोधी रंग (एकल इकत) है। दूसरी पाटन पटोला है, यह क्षैतिज रूप से प्रतिरोधी रंग (डबल इकत) है।
पटोला साड़ियों के कुछ ओर नाम इस प्रकार हैं। नारी कुंजर भट (महिलाओं और हाथियों का पैटर्न), पान भट (लोक पत्ती आकृति), नवरत्न भट (चौकोर आकार का पैटर्न), वोहरागजी (वोहरा समुदाय से प्रेरित), फुलवाली भट (पुष्प) और रतनचोक, भट (ज्यामितीय) आदि।

Patola Saree : दुल्हन के लिए पटोला साड़ी का क्यों ख़ास है?

पनेतर साड़ी (Patola Saree) गुजराती शादियों का एक अनिवार्य हिस्सा है।  जैन, साथ ही हिंदू दुल्हनें, अपनी शादी में पनेतर साड़ी पहनती हैं।  पनेतर एक सफेद शरीर और लाल बॉर्डर वाली रेशमी साड़ी है।  सफेद शरीर को गज्जी रेशम से बुना जाता है, जो ज़री, बंधनी रूपांकनों और अन्य प्रकार की रसीली कढ़ाई से सजी होती है।