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Samlaingik Vivah Ka Virodh:माय लॉर्ड के खिलाफ खड़ी हुई बार काउंसिल ऑफ इंडिया, Samlaingik vivah भारतीय संस्कृति और सभ्यता को नष्ट कर देगी

SameSexMarriage: इन दिनों एक भारत में समलैंगिक विवाह को लेकर बड़ी चर्चा हो रही है, जिनमें सबसे बड़ी चर्चा भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में हो रही है। जहां कोई स्त्री और पुरुष की परिभाषा तय कर रहा है। जो एक डॉक्टर और वैज्ञानिक का काम है, उसको कुछ चंद लोग अपने हिसाब से तय करने पर तुले हुए हैं। आए दिन अनाप शनाप बयान ज्ञान दे रहे हैं। यह काम 140 करोड़ लोगों ने जिनको चुना है, उनका है न कि एक ऐसी संस्था जिसका जनता से कोई लगाव नहीं है और न ही वह जनता के प्रति जवाबदेह है।

समलैंगिक विवाह को लेकर क्या करना है, यह भारतीय संसद, सांसदों और जनता के प्रति जबावदेह सरकार का है। क्योंकि इनको जनता खुद अपने वोट की शक्ति से चुनती है। अगर कोई दूसरी संस्था इसको लेकर कोई आदेश जारी करती है तो वह सीधे संसद और भारतीय जनता के अधिकारों का उल्लंघन होगा। क्योंकि भारत में आज 99.99% लोग समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के खिलाफ़ हैं। समलैंगिक विवाह को मान्यता का मतलब पश्चिमी गंदगी को भारत में स्वीकार करना और उसे भारत में अफीम की तरह बांट देना है, जो भारत के भविष्य और उसकी संस्कृति को बर्बाद कर देगा।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया समलैंगिक विवाह के खिलाफ़

आज भारतीय सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचुंड को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने तगड़ा जबाव दिया और समझाया कि स्त्री और पुरुष में अंतर क्या है।

23 अप्रैल 2023 को Bar Council of India ने एक समलैंगिक विवाह के खिलाफ़ एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें BCI ने सुप्रीम कोर्ट को अहम बिंदू सुझाए और बताया कि सुप्रीम कोर्ट का समलैंगिक विवाह किस तरह से भारतीय संस्कृति और सभ्यता को बर्बाद कर देगा।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपने प्रस्ताव में कहा है, कि समान-लिंग विवाह के मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए, विविध सामाजिक-धार्मिक पृष्ठभूमि के हितधारकों के एक स्पेक्ट्रम को ध्यान में रखते हुए, यह सलाह दी जाती है कि यह सक्षम विधायिका द्वारा विभिन्न सामाजिक, धार्मिक समूहों को शामिल करते हुए एक विस्तृत परामर्श प्रक्रिया के बाद निपटाया गया।

बीसीआई का कहना है कि मानव सभ्यता और संस्कृति की स्थापना के बाद से, विवाह को आम तौर पर जैविक पुरुष और महिला के मिलन के रूप में स्वीकार किया जाता है और प्रजनन और मनोरंजन के दोहरे उद्देश्य के लिए वर्गीकृत किया जाता है।

BCI का मानना है कि 99.9% से अधिक लोग समलैंगिक विवाह का विरोध करते हैं और सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे को विधायी प्रक्रिया पर छोड़ देना चाहिए।

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