भारतीय रेलवे
रेलगाड़ी मानव सभ्यता की सबसे सरल, सुरक्षित और कम खर्चीला परिवहन संसाधन है। रेल को भारत में गरीबों की सवारी गाड़ी कहा जाता है। क्योंकि परिवहन के दूसरे संसाधन बहुत ज्यादा खर्चीले हैं। जिनका किराया गरीब तबके के लोग वहन नहीं कर सकते हैं। इसलिए भारत में ज्यादा दूरी की यात्रा के लिए हर प्रकार के लोग ट्रेन का ही प्रयोग करते हैं।

भारतीय रेलवे नेटवर्क
वर्तमान में भारत का रेल नेटवर्क दुनिया में टॉप 5 में आता है। मार्च 2020 के आंकड़ों के अनुसार भारत में पूरा रेल नेटवर्क 126,366 km (78,520 mi) का है। जिसमें दोहरा रेलमार्ग मार्च 2020 के अनुसार 25,034 km (15,555 miles Km) है। इस बड़े रेल नेटवर्क का करीब 39,886 km (24,784 miles Km) का मार्ग विद्युतीकृत हो चूका है। इतने बड़े रेलमार्ग पर करीब 7,349 रेलवे के स्टेशन पड़ते हैं और करीब 15 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं।
भारतीय रेलवे के पितामाह
हम सब जानते हैं कि जब भारत की पहली ट्रेन चली थीं तब भारत में अंग्रेजों का शासन था। इसलिए उस गुलाम भारत को ब्रिटिश भारत कहा जाता है। अंग्रेज भारत में ट्रेन भारतीयों की सुविधा के लिए नही लाए थे। बल्कि अंग्रेजी हुकूमत का भारत में ट्रेन को चलाने का सबसे प्रमुख उद्देश्य यह था कि इतने बड़े भारतीय साम्राज्य पर वह कैसे अधिक से अधिक समय तक नियंत्रण बनाएं रख सकें और बड़े पैमाने पर भारत के संसाधनों को लूट कर ब्रिटेन भेजें जा सकें। एक अनुमान के अनुसार अंग्रेजों ने 39 ट्रिलियन डॉलर भारत से अपने देश ब्रिटेन ले गये थे। अब आप समझ गए होंगे कि अंग्रेजो ने भारत में ट्रेन क्यों चलाई थी।
- भारत में पहली बार ट्रेन 16 अप्रैल 1853 में बोरी बंदर से ठाणे के बीच चली थीं।
- यह ट्रेन ब्रिटिश भारत के समय महान भारतीय प्रायद्वीप रेलवे (Great Indian Peninsula Railway )बोर्ड के द्वारा संचालित की गईं थीं।
- पहली ट्रेन को चले हुए अभी 168 बर्ष का समय बीत गया है।
- ब्रिटिश भारत की पहली ट्रेन उस समय के ब्रिटेन द्वारा नियुक्त वॉयसरोय लॉर्ड डलहौजी द्वारा चलाई गई थी। इसलिए लॉर्ड डलहौजी को भारतीय रेल का पितामाह भी कहा जाता है
- भारत के पहले ट्रेन ट्रैक की लंबाई करीब 34 Km थी।
- इस ट्रेन में लगें भाप के इंजनो के नाम साहिब, सुल्तान और सिंध था जो इंग्लैंड से मगायें गये थे।
- पहली ट्रेन में केवल 14 डिब्बे ही थे और इस पहली ट्रेन की सवारियों की संख्या केवल 400 थी।
- पहली ट्रेन बोरी बंदर ट्रैक से 3:30 pm पर चली थीं और करीब 4: 45 Pm पर ठाणे पहुंच गई थी।
जब अंग्रेजो ने भारत छोड़ा था तब तक उनके द्वारा 63,140 Km का रेल मार्ग बिछा दिया गया था। भारत की स्वतंत्रता के बाद रेल सरकारी उपक्रम घोषित कर दिया गया था।