mossad 101:दुनिया में हर देश की कोई न कोई एक खुफिया एजेंसी होती है, जो अपने देश की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होती है। वैसे तो विश्व में बहुत से शाक्तिशाली खुफिया एजेंसियां मौजूद हैं। लेकिन दुनिया में एक ऐसा देश है जो हमेशा ही अपने दुश्मनों से घिरा रहता था। तब भी उसे अपने दुश्मनों से डर नहीं लगता है, उसको डर न लगने का बड़ा कारण है। उस देश की खतरनाक खुफिया एजेंसी है, जो अपने दुश्मनों को नर्क लोक से भी ढूंढ़ कर बेदर्द मौत देती है।

इज़राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद की कहानी
इज़राइल ही वह देश है, जिसके चारों तरफ दुश्मन हैं। लेकिन तब भी वह बेखौफ रहता है। इज़राइल कभी भी अपने दुश्मन से यह नहीं कहता है कि आप मेरे देश में हमला मत करना। इस यहूदी देश का यह साहस उसकी विख्यात खुफिया एजेंसी मोसाद के कारण है। मोसाद इजराइल के हर दुश्मन को चुन चुन कर मारती है। मोसाद के आगे अमेरिका की ‘सीआईए ‘भारत की ‘रॉ ‘ रूस की केजीबी और यूके की एम आई 6 भी कहीं नहीं ठहरती है। इज़राइल की ही वह खुफिया एजेंसी है, जिसने अकेले ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम की फाइल निपटा दी है अर्थात् मोसाद ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से विफल कर दिया।
मोसाद के असंभव कुछ नहीं
इसके खुफिया मिशन बहुत ही भयानक और रहस्यमई होते हैं, जब यह किसी मिशन को अपने हाथों में लेती है तो यह समझ लो कि वह कार्य पूर्ण हो जायेगा। क्योंकि
मोसाद अत्यधिक समर्पण और सटीकता के लिए दुनिया में विख्यात है। जिसके मिशन में गलती या असफलता के लिए कोई जगह नहीं होती है।
मोसाद की दुनिया में पहुंच
वैसे तो मोसाद की पहुंच दुनिया के हर कोने में है, विशेष रूप से मोसाद उन देशों में आवश्य होगी। जहां से इजराइल को अपने अस्तिव और नागरिकों के लिए खतरा महसूस होगा। इसी के साथ इज़राइल अपने वजूद के लिए कुछ भी और किसी भी सीमा को पार कर सकता है।
दुश्मन का धरती के आखिरी कोने तक पीछा
मोसाद अपने दुश्मन का पहले पता लगाती है और उसके बाद वह दुनिया के किसी भी हिस्से में क्यों न हों। मोसाद उसको मार के ही दम लेती है।
जिसका उदाहरण एडोल्फ इचमैनहै, जिसने सेकंड विश्व युद्ध में यहूदियों का नरसंहार किया था। इजरायल के लोग इचमैन सख्त सजा देना चाहते थे। जिसके लिए इजरायल के प्रधान मंत्री डेविड बेन-गुरियोन ने जिंदा इचमैन को पकड़ने का आदेश दिया। जिसको 11 मई 1960 को अर्जेंटीना में मोसाद द्वारा पकड़ लिया गया था और बाद में इजराइल में लाकर उस पर मुकदमा चलाया गया था। जिसमें वह दोषी ठहराया गया, जहां उसे 23 मई 1960 को फांसी पर लटका दिया गया।
मोसाद, मारो और उड़ जाओ
इचमेन की तरह का मिशन बहुत ही जटिल और खतरों से भरा हुआ होता है लेकिन मोसाद के लिए इस तरह के मिशन बाएं हाथ का काम हैं।
लेकिन उसके कामकाज का सीधा अर्थ होता है कि दुश्मन को ‘मारो’ और ‘उड़’ जाओ। यहीं उसके कामकाज की शैली होती है।
मोसाद का उद्देश्य
मोसाद का उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट है कि वह इजराइल के दुश्मन को केवल मारती ही नहीं है बल्कि वह उन लोगों के दिलों और दिमाग में डर बैठाती है। जो इजराइल की सुरक्षा के लिए खतरा बन रहें होते हैं। इसलिए दुनिया मोसाद को ‘किलिंग मशीन’के नाम से भी पुकारती है।
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मोसाद की स्थापना की शुरूआत
यहूदी हमेशा से अपना एक अलग देश मांग रहें थे और इस मांग में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वृद्धि हुई। अब यहूदी किसी भी क़ीमत पर अपने लिए अलग देश चाहतें ही थे। यहूदियों की मांग का परिणाम 1948 में प्रकट हुआ, जिससे एक यहूदी देश इजराइल की उत्पत्ति हुई। हालाकि यह भी उतना सच है कि इजराइल चारों तरफ से अपने दुश्मनों से घिरा हुआ है। जिस कारण से उसे अपनी सुरक्षा के लिए एक एजेंसी की जरूरत थीं और इस काम में मोसाद अपना बखूबी रोल निभाता है।
इज़राइल के लिए एक खुफिया एजेंसी बनाने का प्रस्ताव सबसे पहले रूवेन शिलोहाकी ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरोनके पास भेजा था। जिसके बाद 13 दिसम्बर 1949 को एक खुफिया एजेंसी का निर्माण किया गया। जिसका शुरूआती नाम ‘Central Institution for Coordinatiom’ था। लेकिन इस नाम को 1951 में बदल कर मोसाद कर दिया गया। इस तरह से दुनिया की सबसे शक्तिशाली और खतरनाक खुफिया एजेंसी का निर्माण हुआ। इसके पहले प्रमुख इस्सर हरेल थे।
शाई का रोल मोसाद की उत्त्पति में
यहूदियों ने दूसरे विश्व युद्ध में एडोल्फ हिटलर की यहूदी विरोधी गतिविधियों का सामना करने के लिए सैन्य समूह बनाए थे। यह सैन्य समूह यूरोप में 1930 और 1940 के दशक में स्थापित किए गए थे। इन सैन्य समूहों में हगनाह प्रमुख सैन्य समूह था और इसकी खुफिया एजेंसी ‘शै’ थीं। इसी खुफिया एजेंसी ने मोसाद को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मोसाद की सरंचना
इज़राइल की तीन प्रमुख खुफिया एजेंसियां अमन, शिन बेट और मोसाद हैं, जिनमें मोसाद बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका काम आंतकवाद से लड़ना, सूचनाओं को एकत्र करना और इजरायल के दुश्मनों के खिलाफ कार्यवायी करना जैसे प्रमुख कार्य करती है। जिसके लिए इसको 8 भागों में बांटा गया है, जिसमें 3 भाग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
- संग्रह विभाग
- स्पेशल ऑपरेशन डिवीजन
- राजनीतिक कार्रवाई और संपर्क विभाग
मोसाद के सभी विभाग बड़ी तेजी से और खुफिया ढंग से मिशन को अंजाम देते हैं।
मोसाद के विख्यात ऑपरेशन
इज़राइल एक छोटा सा देश है लेकिन वह खुफिया क्षमता दुनिया में सबसे आगे है। जिसमें अमेरिका और भारत दूर दूर तक नज़र नहीं आते हैं। इसने मात्र 70 वर्षों के समय अंतराल में ही 2700 से अधिक सफल ऑपरेशन अंजाम दिए हैं। मोसाद दावा करती है कि उसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी देशों की तुलना में अधिक अपराधियों को मारा ही है।
1.ऑपरेशन थंडरबॉल्ट
यह बात 26 जून 1976 की जब फ्रांस से एक हवाई जहाज ग्रीस के लिए उड़ान भरी थी तभी इस प्लेन को आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया गया था। जिसमें इजराइल के 94 नागरिक भी मौजूद थे। इस हवाई जहाज का अपहरण 26 जून 1976 को फ़िलिस्तीनी आतंकवादी संगठन ‘पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन’ के द्वारा किया गया था। फिर इस हवाई जहाज को युगांडा के ‘एयरपोर्ट एंटेब्बे’ पर लैंडिंग कराई गई थी, युगांडा के तानाशाह ने भी फ़िलिस्तीनी आतंकवादी संगठन का साथ दिया था।
इस आतंकवादी संगठन ने इजराइल से नागरिकों के बदले में कुछ उनके सहयोगियों को छोड़ने की मांग की। लेकिन मोसाद का एक सिद्धान्त है कि वह कभी भी आतंकवादियों से समझौता नहीं करती है।
इसके बाद मोसाद के खुफिया जासूसों ने एंटेब्बे एयरपोर्ट पर अचानक धावा बोला और केवल 90 मिनट के अंदर अपने सभी नागरिकों को बचा लिया। इसी ऑपरेशन से मोसाद पूरी दुनिया में विख्यात हो गई।
2.ऑपरेशन हीरा
यह ऑपरेशन 60 के दशक में रूस के मिग 21को चुराने के लिए चलाया गया था। क्यों कि 60 के दशक में मिग 21 लड़ाकू विमान की मांग बहुत ज्यादा थी, जिसको हर कोई हासिल कर लेना चाहता था। इसको पाने में अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए (CIA) ने भी पूरी ताकत झोंक दी थी। लेकिन वह इसको प्राप्त करने में असफल रही थी, तब अमेरिका ने यह काम इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद को दिया। हालाकि मोसाद की भी पहली दो कोशिशें फैल हों गई थी। लेकिन मोसाद 1964 की तीसरी कोशिश में सफल हो गई। इस ऑपरेशन को मोसाद की महिला जासूस ने अंजाम दिया था। जिसने मिंग 21 के पायलेट को पहले अपना दोस्त बनाया था और बाद में उसे इस लड़ाकू विमान को इजराइल तक लाने के लिए मजबूर भी कर दिया था।
3.ऑपरेशन क्रोध ऑफ गॉड (Wrath of God)
मोसाद ने म्यूनिख आतंकी हमले के जवाब में ‘ऑपरेशन ‘Wrath of God’चलाया था। दरअसल जर्मनी के म्यूनिख शहरमें 1972 में ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया था। जिसमें इजराइल के खिलाड़ियों ने भी हिस्सा लिया था, तभी कुछ आतंकवादियों ने हमला कर दिया और 11 इजराइली ओलंपिक खिलाड़ियोंको मार डाला था। दुनिया इस हमले को ‘म्यूनिख मैसकेयर’ के नाम से जानती है। इस हमले की जिम्मेदारी फिलिस्तीन के आतंकी संगठनो ‘फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ)’ और ‘फतेह’ने ली थी।
इज़राइल अपने 11 नागरिकों की मौत से बेहद गुस्से में था, जिसके जवाब में मोसाद ने ऑपरेशन Wrath of God लॉन्च किया और अगले 20 वर्षों तक एक एक आतंकी को खोज निकाला और उनको अलग अलग देशों में जाकर मार डाला।
4.ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर हमला
इज़राइल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए खतरे के रूप में देखता है, जिसको वह किसी भी कीमत पर पूर्ण नही होने देगा। इज़राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने 27 नवंबर 2020 को ईरान के प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की तेहरान में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हमले के बाद ईरान का परमाणु कार्यक्रम 20 वर्ष पीछे चला गया क्योंकि मोसाद ने ईरान के ‘परमाणु कार्यक्रम के पिता’ की ही फाइल निपटा दी। हालाकि इजराइल ने परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या में अपने हाथ को सिरे से नकार दिया, लेकिन बीबीसी की रिपोर्टिंग एक अनुसार, जिस तरह से ऑपरेशन को बेहद आधुनिक हथियारों से सफल अंजाम दिया गया है। वह केवल मोसाद ही कर सकती है।
मोसाद अपने हर ऑपरेशन में दुनिया के अत्याधुनिक हथियारों का प्रयोग करती है और बेहद क्रूरता से इजराइल के शत्रु काे मौत देती है।